मेरे लिए कार्टून एक विधा से बढकर,व्यंग के सारथी के समान,एक सामाजिक आंदोलन हैं.....
वाह! बहुत बढिया. एकदम सही बात. प्रैस में जब इलैक्ट्रॉनिक टेलीप्रिन्टर आ गया, तो हम लोगों का मन लिखने में नहीं लगता था, कारण पुराने खटखटिया टेलिप्रिंटर के शोर की आदत जो पड़ गई थी. उसकी आवाज़ में ही लिखने का मन बनता था :)
mazedaar...
यह आदत किसी को न लगे।
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3 टिप्पणियां:
वाह! बहुत बढिया. एकदम सही बात. प्रैस में जब इलैक्ट्रॉनिक टेलीप्रिन्टर आ गया, तो हम लोगों का मन लिखने में नहीं लगता था, कारण पुराने खटखटिया टेलिप्रिंटर के शोर की आदत जो पड़ गई थी. उसकी आवाज़ में ही लिखने का मन बनता था :)
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