बहुत से वृद्ध हैं जो चिरौरी कर अस्पताल में ही बने रहना चाहते हैं। घर में उनके लिये सम्मानजनक जगह नहीं है। रेलवे अस्पताल में ऐसा बहुत देखने में आ रहा है। ऐसा बढ़ता जा रहा है।
हमारी संस्कृति में वृद्धाश्रम जैसी कोई सराय हुआ ही नहीं करती थी, सो हमारी पूर्व पीढी दादा-दादी दिवस मनाना जानती ही नहीं थी, क्योंकि उन्हें तो रोज देव स्वरूप दादा-दादी की सेवा सुश्रूषा में स्वर्गिक आनंद मिलता था, आज इसकी आवश्यकता इस लिए है कि आज वो हमारे पास नहीं होते, हम इस पीड़ा का अनुभव कल करेंगे जब हमें कोई दादा-दादी पुकारने वाला नहीं होगा . - विजय
13 टिप्पणियां:
bahut kathor maar ki hai.
शानदार ........
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.......
दिल को चीर गया
इतना पैना,धारदार कार्टून.
बधाई.
कंटिला
बहुत सुन्दर चित्र
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हिन्द-युग्म: आनन्द बक्षी पर विशेष लेख
वाह वाह डूबेजी, कितनी बड़ी बात कितने सहज में व्यक्त कर दी आपने।
आपने तो असंख्य असहाय वृध्दों की पीडा को वाणी दे दी।
गंगों को वाणी देने वाला और वाचालों की बोलती बन्द कर देने वाला शानदार, तीखा कार्टून।
साधुवाद।
बहुत से वृद्ध हैं जो चिरौरी कर अस्पताल में ही बने रहना चाहते हैं। घर में उनके लिये सम्मानजनक जगह नहीं है। रेलवे अस्पताल में ऐसा बहुत देखने में आ रहा है।
ऐसा बढ़ता जा रहा है।
दुबे जी
आज कल यही हो रहा है
सच कितना मार्मिक संदेश
छिपाया है इस कार्टून में
सर्वोत्तम लिख दूँ जी
कोई बिलोरन तो न होगी
बहुत सुंदर बनाया....आंखे भर आयी...
हमारी संस्कृति में वृद्धाश्रम जैसी कोई सराय हुआ ही नहीं करती थी, सो हमारी पूर्व पीढी दादा-दादी दिवस मनाना जानती ही नहीं थी, क्योंकि उन्हें तो रोज देव स्वरूप दादा-दादी की सेवा सुश्रूषा में स्वर्गिक आनंद मिलता था,
आज इसकी आवश्यकता इस लिए है कि आज वो हमारे पास नहीं होते,
हम इस पीड़ा का अनुभव कल करेंगे जब हमें कोई दादा-दादी पुकारने वाला नहीं होगा .
- विजय
JO APNE BADE BUJURGO KI UPEKCHA KARTE HAI.UNKE UPER YE VAJRAPAT HAI,BAHUT KATHORE PAINA CARTOON,APNE BAHUT ACCHA TEER MARA HAI.LAGE RAHO BHAIJI.
Aap logon ki to duniya hi alag hai.....? bhot khub....!
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